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Showing posts from November, 2020

सोमनाथ मन्दिर से जुड़ी कुछ खास बातें !

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1) सोमनाथ मंदिर  भगवान् शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों  में सबसे पहला ज्योतिर्लिंग  माना जाता है। इस मंदिर का निर्माण चन्द्र देव ने खुद पर लगे श्राप से मुक्ति के लिए करवाया था। 2) सोमनाथ मन्दिर का उल्लेख ग  में भी मिलता है। 3) लोककथाओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण  ने अपने देह का त्यागा यहीं पर किया था। यहां पर उनका एक मंदिर भी है। 4)  सोमनाथ मंदिर  में कुल 24 शिवलिंगों को स्थापित किया गया था और सोमनाथ का शिवलिंग सभी शिवलिंगों के बीच में था। 5) इस मन्दिर के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि ईसा के पूर्व यहां एक मन्दिर था जिस जगह पर दूसरी बार मन्दिर का निर्माण 7 वीं सदी  में वल्लभी के मैत्रक राजाओं ने करवाया। 6) साल 1970  में जामनगर कि राजमाता ने अपने स्वर्गीय पति की याद में मंदिर के आगे पूर्वदिशा में उनके नाम से दिग्विजय द्वार  का निर्माण करवाया। 7) सोमनाथ मन्दिर में रोज साढ़े सात बजे से लेकर साढ़े आठ बजे तक एक लाइट और साउंड शो चलता है। जिसमें  सोमनाथ मन्दिर का इतिहास वर्णन बताया जाता है।

सोमनाथ मंदिर कितनी बार तोड़ा और बनवाया गया ?

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1) इस मंदिर पर 17 बार आक्रमण  किया गया था।  2) इस मन्दिर के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि ईसा  के पूर्व यहां एक मन्दिर था जिस जगह पर दूसरी बार मन्दिर का निर्माण 7 वीं सदी  में वल्लभी के मैत्रक राजाओं  ने करवाया। 3)  8 वीं सदी  में सिंध के अरबी गवर्नर जुनायद ने तोड़ने के लिए अपनी सेना भेजी। 4) प्रतिहार राजा नागभट्ट  ने इसका तीसरी बार निर्माण कराया। 5) अरब यात्री अलू बर्णी  ने यात्रा वृतांत में इस मंदिर के बारे में लिखा। जिससे प्रभावित होकर महमूद गजनवी  ने 1024  में हाथ जोड़कर पूजा कर रहे हजारों लोगों को कत्ल कर दिया। उसने मंदिर में लूटपाट और तोड़फोड़ भी की। उसने यहां लगे चन्दन के दरवाजे तक को भी उखाड़ दिया। 6) बाद में राजा भीमदेव  ने इस मंदिर को बनवाया और साल 1093  में सिद्धराज जयसिंह  ने भी मंदिर की प्रतिष्ठा में सहयोग दिया। 7) साल 1168 ईसवी  में विजेश्वर कुमार पाल  और सौराष्ट्र के राजा खंगार ने भी सोमनाथ मंदिर का सौंदर्यीकरण करवाया था। 8) साल 1297  में जब दिल्ली सल्तनत के अलाउद्दीन खिलजी  ने ...

सोमनाथ मन्दिर की, चंद्रदेव के शाप से जुड़ी पौराणिक कथा !

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  ब्रह्मा जी के पुत्र दक्ष प्रजापति ने अपनी 27 कन्याओं का विवाह चंद्रमा से एक साथ ही किया था। लेकिन चंद्रदेव की अपनी पत्नि रोहिणी से अधिक प्रेम करते थे, जिसके कारण चंद्रदेव की बाकी पत्नियां और रोहिणी की बहनें बहुत दुःखी रहती थी। जब दक्ष प्रजापति को यह बात पता चली तब उन्होंने चंद्रदेव को समझाया। लेकिन चंद्रदेव पर कोई असर नहीं पड़ा , तब दक्ष ने  चंद्रदेव को क्षय रोग से ग्रस्त हो जाने का शाप दे दिया। इससे चंद्रदेव का शरीर निरंतर घटने लगा। चंद्रदेव ब्रह्माजी के पास गए। तब ब्रह्माजी ने चंद्रदेव को बाकी सभी देवताओं के साथ प्रभास क्षेत्र में सरस्वती के समुद्र से मिलन स्थल पर जाकर भगवान  शिव की आराधना करने को कहा , तब प्रभास क्षेत्र में देवताओं के साथ जाकर छह मास तक दस करोड़ महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया। चंद्रदेव की आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव और माता पार्वती वहां प्रकट हुए और चंद्र देव को अमरता का वरदान दिया। दक्ष के शाप का असर उन्होंने यह वरदान देकर कम कर दिया कि महीने के पंद्रह दिनों में चंद्र देव के शरीर का थोड़ा−थोड़ा क्षय घटेगा और इन पंद्रह दिनों को कृष्ण पक्ष कहा जा...

नूर इनायत खान से जुड़ी कुछ खास बातें !

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1) नूर का पूरा नाम नूर-उन-निसा इनायत खान  था। 2) उनकी मां ओरा मीना रे बेकर  (अमीना बेगम) अमेरिकी और पिता हजरत इनायत खान  था और वो टीपू सुल्तान  के परपोते थे। 3) नूर  का जन्म रूस  की राजधानी मॉस्को  में 1914  को हुआ था। 4) नूर  के पैरेस  के घर का नाम फजल मंजल  था। 6) 1943  में वह सीक्रेट एजेंट बनी। 7) वह दुसरे विश्व युद्ध  में पहली एशियन सीक्रेट एजेंट  थी। 8) द्वितीय विश्व युद्ध  के दौरान नूर विंस्टन चर्चिल  की काफ़ी विश्वशनीय थी। 9) नूर पहली महिला रेडियो ऑपरेटर  थी,जिन्हें नाजियों के कब्जे वाले फ्रांस में भेजा गया था। वहां नूर का काम था कि वो छापामार कारवाही को बढ़ावा दे। 10) लंदन  में रहने वाली भारतीय मूल की एक पत्रकार बीश्राबणी बासु  ने उनकी आत्मकथा “स्पाई प्रिंसेस यानी जासूस राजकुमारी- नूर इनायत ख़ान”  लिखी है। 11) नूर  महात्मा गांधी  के विचारों की प्रशंसक थी और भगवान बौद्ध  से प्रभावित होकर उन्‍होंने एक किताब " ट्वेंटी जातका टेल्स "  लिखी जो 1939  में प्रकाशित...

कैसी थी प्राचीन भारत के पैदल सैनिकों की वेशभूषा और अस्त्र शस्त्र ?

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1) महाभारत के अनुसार पैदल सैनिक  लाल रंग के कपड़े पहनते थे।  2) नील वस्त्रधारी , पितवस्त्रधारी , लाल पगड़ी वाले, सफेद वस्त्र वाले और अलग - अलग तरह के कपड़े पैदल सैनिक पहनते थे , जिसका वर्णन महावेस्सन्तर जातक में मिलता है। 3) धनुष बाण उनका प्रमुख अस्त्र शस्त्र, तलवार , विभिन्न प्रकार के भाले , परशु और गदा आदि का इस्तेमाल किया जाता था। 4) पैदल सैनिक अपनी रक्षा के लिए कवच धारण करते थे। जैन ग्रंथो के अनुसार हाथो पर चमड़े की पट्टी बांधते थे। 5) अलीढ़ , प्रत्यालीढ़ , वैशाख, मंडल और समपाद नाम के आसन योद्धा लोग धनुष - बाण चलाते समय स्वीकार किया करते थे। 6) पैदल सैनिक तलवार , शक्ति, मीन्दीपाल , बरछी, तोमर, भाला, तीर, शुल गोफन,धनुष - बाण आदि शस्त्र इस्तेमाल करते थे। 7) नील कवचधारी धनुष और तृणीरधारी पैदल सैनिक का उल्लेख महाजनक जातक में मिलता है। 8) एरियन ने लिखा है कि भारतीय पैदल सैनिक अपनी लंबाई के बराबर धनुष धारण करते है। वे इससे बाण छोड़ने के लिए धनुष को जमीन पर टेक कर बाएं पैर के सहारा देकर इसकी डोरी खींचते है। उनके बाण लगभग तीन गज लम्बे होते है। उनके द्वारा छोड़े गए बाण को किसी प्रक...

पदाति सेना और अक्षोहिणी सेना !

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पदाति सेना 1) प्राचीन भारत में विश्व के बाकी भागों की तरह पदाति सैनिक  (पैदल सैनिक), सेना को प्रमुख अंग माना जाता था। वैदिक काल में पदाति सेना का काफी महत्व था। 2) दुर्ग की रक्षा के लिए पैदल सैनिक का अधिक महत्व है क्योंकि जिस समय शत्रु दुर्ग के फाटक को तोड़ रहा हो, उस समय पैदल सैनिक ही दुर्ग की दीवारों पर और बुर्जो में या दीवालों के पीछे से अपने अस्त्र शस्त्र के साथ दुर्ग की रक्षा करते हुए आक्रमणकारियों पर प्रहार कर सकते थे। 3) अथर्ववेद  के अनुसार पदाति सेना रथ - सेना से कम महत्व की मानी जाती थी।  अथर्ववेद  में कहा गया है कि अग्नि देवता  शत्रुओं पर उसी तरह विजय प्राप्त करते है जैसे रथारोही पैदल पर। 4) महाभारत  के अनुसार उनके युद्धों से यह पता चलता है कि पदाति योद्धा  रथ पर सवार योद्धा के पीछे - पीछे अनुग , पदानुग और अनुचर की तरह चलने वाले थे। 5) पी. सी. चक्रवर्ती  के अनुसार हिन्दू सेनाओं में चौथी शताब्दी ई. पू.  से लेकर  1200 ई . के अंत तक पैदल सैनिकों की अधिकता बनी रही। 6) अग्नि पुराण  के अनुसार जिस राजा की सेना के पदाति सैनिकों ...

चतुरंगिणी सेना का इतिहास !

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1) सेना के तीन मुख्य अंग थे - पदाति , रथ,अश्व। 2) वैदिक काल में ,वैदिक काल के बाद सैन्य संगठन में उत्तरोत्तर विकास होता गया। 3) रामायण  और महाभारत  काल से ही सेना को चतुरंगिणी  कहा जाने लगा, पर  महाभारत  के शांति पर्व  में सेना के 6 अंगों के बारे में जानकारी मिलती है। 4) बौद्ध जातक  व जैन ग्रंथों  में भी  चतुरंगिणी सेना  का विस्तार से वर्णन किया गया है। 5) सेना के लिए  चतुरंगिणी सेना  प्रचुर प्रयोग होने के कारण चतुरंग  शब्द सेना के लिए साहित्यिक सांकेतिक शब्द बन गया। इससे पता चलता है कि 600 ई.पू.  में  चतुरंगिणी सेना  में काफी विकास हो गया था। यूनानी इतिहासकारों  के द्वारा के अनुसार  सिकंदर  के आक्रमण के समय क्षुद्रक  और मालव  सेना में पदाति , हाथी व रथ थे। 6) मौर्य काल  में चतुरंगिणी सेना  - पैदल , अश्वरोही , रथातोही व गजरोही होने का उल्लेख कौटिल्य  ने कई स्थानों पर किया है। 8) महर्षि पतंजलि  ने अपने महाभाष्य  में चतुरंगिणी सेना की पूरी जानकारी दी गया है। 9)...

प्राचीन भारत में कितने प्रकार की सेनाएं होती थी ?

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प्राचीन भारतीय ग्रंथों में राज्यों के सात अंगों में से एक महत्वपूर्ण अंग सेना को माना जाता है।  मौर्य काल  में कौटिल्य  ने 6 प्रकार के बलों  (सेनाओं) का वर्णन  अर्थशास्त्र  में किया है। - 1) मौल बल ( सेना ) - स्वामिभक्त व मूल स्थान की रक्षा के लिए थी। 2) भृतक बल - सवैतनिक थी। 3) श्रेणी बल - अस्त्र शस्त्र निपुण व अन्य कार्यो से संबद्ध थी। 4) मित्र  बल - मित्र राजा की सेनाएं थी। 5) अमित्र बल - शत्रु द्वारा प्राप्त सेनाएं थी। 6) अटवी बल - आटविक सेना थी। अर्थशास्त्र  में कौटिल्य  ने 6 प्रकार के बलों (सेनाओं) के अलावा एक सातवें प्रकार की सेना का वर्णन किया है। औत्साहिक बल  से मतलब नेतृत्व विहीन , अलग - अलग देशों में रहने वाली राजा स्वीकृति या अस्वीकृति से ही दूसरे देशों में पर लूट मार करने वाली सेना से है। कौटिल्य ने उसके भेद किए है  - भेद और अभेद । 1) भेद सेना - भेद से मतलब दैनिक भत्ता या मासिक वेतन लेकर शत्रु के देश में लूटपाट करने वाली , राजा की सामयिक आज्ञाओं का पालन करने वाली और दुर्गो में कार्य करने वाली सेना से है। 2...