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Showing posts from August, 2024

कालयवन कौन था ?

कालयवन का जन्म  एक बार महर्षि गार्ग्य को उनके साले ने यादवों की गोष्ठी में नपुंसक कह दिया। उस समय यदुवंशी हँस पड़े।  तब महर्षि गार्ग्य ने बहुत गुस्से में दक्षिण समुद्र के तट पर जा कर , यादव सेना को भयभीत करने वाले पुत्र की प्राप्ति के लिए तपस्या की।  उन्होंने महादेव जी की उपासना केवल लोहे की चूर्ण खाकर किया, तब भगवान शंकर ने 12 वें वर्ष में खुश होकर उन्हें वरदान दिया।  एक पुत्रहीन यवनराज ने महर्षि गार्ग्य की अत्यंत सेवाकर उन्हें संतुष्ट किया, उसकी स्त्री के संग से ही इनके एक कृष्ण वर्ण बालक हुआ। वह यवनराज उस कालयवन नामक बालक को, जिसका वक्ष स्थल वज्र के समान कठोर था ,अपने राज्य पद दे दिया और स्वयं वन चले गए। नारद जी और कालयवन कालयवन ने नारद जी से पूछा पृथ्वी पर बलवान राजा कौन - कौन से है ? इस पर नारद जी ने उसे यादवों को ही सबसे अधिक बलशाली बताया। यह सुनकर कालयवन ने हजारों हाथी, घोड़े और रथों सहित सहस्त्रों करोड़ सेनाओं को लेकर मथुरा पुरी आ गया।  जरासंध और  कालयवन का कृष्ण जी से युद्ध  एक तरफ जरासंध का आक्रमण और दूसरी ओर कालयवन की चढ़ाई। श्री कृष्ण ने स...

दुर्वासा ऋषि ने देवराज इन्द्र को क्या श्राप दिया ?

  विष्णु पुराण के अनुसार एक बार शंकर जी के अंशावतार श्री दुर्वासा जी पृथ्वी पर घूम रहे थे,घूमते - घूमते उन्होंने एक विद्याधरी के हाथों में संतानक पुष्पों की एक दिव्य माला देखी।  उन्होंने वो माला उस सुंदरी से मांग ली और पहन ली। तभी उन्होंने देवताओं के राजा इन्द्र को ऐरावत पर आते देखा और उस माला को दुर्वासा ऋषि ने इंद्र को दे दिया। देवराज ने उसे लेकर ऐरावत हाथी के सिर पर डाल दिया और ऐरावत ने उस माला को पृथ्वी पर फेंक दिया । ये देखकर दुर्वासा ऋषि ने क्रोध में उन्हें श्राप दे दिया कि "जिस ऐश्वर्य और पद के घमंड में तूने मेरी भेंट का अपमान किया है।  तेरी उस त्रिलोकी का वैभव नष्ट हो जायेगा, तेरा ये त्रिभुवन भी श्रीहीन हो जायेगा।" फिर इंद्र ने दुर्वासा ऋषि से क्षमा मांगी लेकिन उन्होंने क्षमा नहीं किया।

कोहिनूर हीरे की कुछ दिलचस्प बातें !

(1) 1083 CE में काकतीय वंश को आज के आंध्र प्रदेश के कोल्लूर के गोलकुंडा माइन से कोहिनूर हीरा मिला था। उस समय ये 793 कैरेट का था ,जिसे वारंगल देवी की बाएं आँख में लगाया गया। जो काकतीय वंश की कुल देवी है। (2) फिर इसे वेनेस के एक जौहरी ने तरासा जिससे इसका वजन 186 कैरेट हो गया।  (3) कोहिनूर पर श्राप है कि ये हीरा जिसके पास रहेगा वो दुनिया का मालिक बनेगा लेकिन बदकिस्मती का सामना भी उसे करना पड़ेगा। इसे कोई महिला ही पहन सकती है इसलिए इसे मन्दिर में दान कर दिया गया। (4) सन् 1930 में वारंगल को हराकर अलाउद्दीन ने कोहिनूर हासिल किया, जिसके 6 साल के अंदर ही अलाउद्दीन की हत्या हो गई।  (5) फिर 1526 में पानीपत की लड़ाई के बाद बाबर ने इब्राहिम लोधी को हराकर कोहिनूर ले लिया और 150 सालों तक कोहिनूर मुगलों के पास रहा।  (6) इसके बाद 1739 में पर्शिया के नादिर शाह ने दिल्ली पर हमला कर दिया, उस समय मुहम्मद शाह ने कोहिनूर अपनी पगड़ी में छुपाने की कोशिश की, लेकिन एक नौकर ने नादिर शाह को ये बता दिया। तब जश्न के दौरान नादिर शाह ने मोहम्मद शाह को पगड़ी बदलने को कहा,उसी वक्त हीरा जमीन पर ग...

पुराणों में इंद्र, सप्तऋषि मनु और मन्वन्तर क्या है ?

विष्णु पुराण के अनुसार प्रत्येक चतुर्युग के अंत में वेदों का लोप हो जाता है, उस समय सप्तर्षि गण ही स्वर्ग लोक से पृथिवी में अवतीर्ण होकर उनका प्रचार करते है।  प्रत्येक सतयुग के आदि में (मनुष्यों की धर्म मर्यादा स्थापित करने के लिए) स्मृति शास्त्र के रचयिता मनु का प्रादुर्भाव होता है और उस मन्वंतर के अंत में तत्कालीन देवता यज्ञ भागों को भोगते हैं और मनु उनके वंशधर मन्वंतर के अंत तक पृथिवी का पालन करते रहते है।  इस प्रकार मनु सप्तर्षि , देवता, इन्द्र और मनु पुत्र राजा गण ये प्रत्येक मन्वंतर के अधिकारी होते हैं। इन 14 मन्वंतरों के बीत जानें पर एक सहस्त्र युग रहने वाला कल्प समाप्त हो जाता है, फिर इतने ही समय की रात होती है। उस समय विष्णु भगवान प्रलयकालीन जल के ऊपर शेष शय्या पर शयन करते है और फिर सृष्टि की रचना ब्रह्मा जी द्वारा की जाती है।  प्रथम मन्वंतर   प्रथम मनु स्वयंभुव थे। दूसरा मन्वंतर दूसरे मन्वंतर के स्वारोचिष नाम के मनु थे। इसमें पारावत और तुषितगण देवता थे और इस मन्वन्तर के विपिश्चित नामक देवराज इंद्र थे। ऊर्ज्ज, स्तम्भ, प्राण, वात पृषभ, निरय और परिवान ये उस सम...

श्री कृष्ण ने काशी को क्यों जलाकर भस्म कर दिया ?

पौंड्रक और श्री कृष्ण का युद्ध  करूष नामक राज्य में पौंड्रक नाम का एक राजा था, जो दिखने में श्री कृष्ण की तरह था और इस बात का उसे बहुत अभिमान था। वह ख़ुद तो श्री कृष्ण कि  तरह चार हाथ रखता और उनमें शंख, चक्र, गदा आदि धारण करता था और श्री कृष्ण को बहरूपिया व खुद को भगवान कहता।  एक बार उसने श्री कृष्ण को संदेश भेजा की वह उसकी शरण में आ जाए और उसे भगवान मान ले, वरना मैं (पौंड्रक) तुम्हारे ऊपर सुदर्शन चक्र छोड़ दूंगा।  काशी के राजा पौंड्रक के मित्र थे,जिनके पास पौंड्रक उस समय रह रहा था। संदेश मिलते ही श्री कृष्ण ने काशी पर चढ़ाई कर दी।  युद्ध के दौरान श्री कृष्ण ने अपने चक्र से पौंड्रक का सर धड़ से अलग कर दिया। फिर काशी नरेश ने पौंड्रक की तरफ से युद्ध किया। श्री कृष्ण ने उसका भी सर धड़ से अलग कर दिया, जो काशी के राजमहल के दरवाजे पर जाकर गिरा।  श्री कृष्ण को मारने के लिए शिव जी से वरदान प्राप्ति  काशी नरेश के पुत्र ने भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए उनकी आराधना की और शिव जी से अपने पिता के हत्या करने वाले को मारने का वर मांगा। तब शिव जी ने उन्हें कहा कि त...