अंग्रेज भारत कब आए थे ?

इस कंपनी का वास्तविक नाम " द गवर्नर एण्ड कम्पनी ऑफ मर्चेंट्स ऑफ लंदन ट्रेंडिंग इन टू दि ईस्ट इंडीज " था।

ईस्ट इंडिया कंपनी का संविधान ,शक्ति और सुविधाओं आदि का विवरण इंग्लैंड के सन् 1600 के राजलेख द्वारा घोषित किया गया जो 31 दिसंबर , सन् 1600 को लागू किया गया।

शुरुआत में कंपनी की समय सीमा सिर्फ 15 साल की थी, लेकिन उसमें ये नियम भी था कि अगर कंपनी का काम लाभदायक न रहा तो इंग्लैंड का सम्राट उसे 2 साल पहले ही समाप्त कर सकता है। 

 सन् 1599 में पूर्वी देशों से व्यापार करने के लिए अंग्रेज व्यापारियों ने एक रॉयल चार्टर के अधीन ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना की थी , जो तत्कालीन ग्रेट ब्रिटेन की प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक कम्पनी के संचालन के लिए 2 गवर्नर और 24 संचालकों का चयन , कंपनी के हिस्सेदारों द्वारा इंग्लैंड में ही किया जाता था। 


31 दिसंबर सन् 1600 को ईस्ट इंडिया कम्पनी ने इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम से आज्ञा प्राप्त कर ली। पूरब से इन्हें व्यापार करने का एकाधिकार मिल गया। 

इस रॉयल चार्टर के अनुसार कंपनी के भारतीय शासन के सभी अधिकार गवर्नर और उनकी 24 सदस्यों की परिषद् को सौंप दिया गया। 

इस अधिकार का यह मतलब था की इंग्लैंड की और कोई व्यापारिक कंपनी इस इलाके में ईस्ट इंडिया कंपनी से होड़ नहीं कर सकती। अंग्रेज कारखानों और डिपो की स्थापना कर सकते थे। 

1612 में अंग्रेज कैप्टन , बेसेंट ने स्वाली नाम के स्थान पर पुर्तगाली सेना को बुरी तरह हरा दिया। मुगलों ने अंग्रेजो की इस वीरता से खुश होकर उन्हें सूरत, कंबाया और अहमदाबाद में व्यापार करने की मंजूरी दे दी। 

1616 में टॉमस रो ईस्ट इंडिया कम्पनी का राजदूत बनकर भारत आया। टॉमस रो को उनकी आशा से अधिक सफलता मिली और मुगलों की राजकीय सीमा में अंग्रेजों को व्यापार करने की इजाज़त मिल गई। 

शाहजहां ने अंग्रेजो को बंगाल भड़ौच और आगरा के क्षेत्रों में व्यापार करने कि आज्ञा दे दी। 1662 में चार्ल्स द्वितीय को पुर्तगालियों से बम्बई दहेज के रुप में ले लिया। 

कम्पनी का पहला कारखाना सूरत में स्थापित किया गया , उसके बाद 1660 में मछलीपट्टनम में और मद्रास (चेन्नई) में , फिर 1690 में कलकत्ता में स्थापित किया। 


इस सहमति के बाद कम्पनी समुद्र पार जाकर नए इलाकों को खोज सकती थी। वहां से सस्ते दामों पर सामान खरीद कर , उन्हे यूरोप में महंगे दामों पर बेच सकती थी। 

कम्पनी को किसी दुसरी कम्पनी से स्पर्धा का कोई डर नहीं था। उस समय की कंपनियां काफी हद तक स्पर्धा से बचकर ही मुनाफा कमा सकती थी। यदि कोई प्रतिस्पर्धी न हो तभी वे सस्ती चीजें खरीदकर उन्हें ज्यादा कीमत पर बेच सकते है।

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