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Showing posts from August, 2021

दुर्गा देवी वोहरा भाग - 3

भगवतीचरण वोहरा की मृत्यु भगवतीचरण ,यशपाल और धनवंतरी की सहायता से चंद्रशेखर आजाद ने भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को लाहौर जेल से निकालने की योजना बनायी।  आजाद की योजना के अनुसार भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को उस समय बचाना था, जब वे सेंट्रल से बोसर्टल जेल में ले जाए जाते थे।  28 मई को भगवती चरण, सुखदेव राज और वैशम्पायन के साथ एक बम लेकर लाहौर से कुछ दूरी पर रावी नदी के किनारे के जंगलों में बम टेस्ट करने के लिए गए।  शाम का समय था भगवती चरण के हाथ में बम था ,बम का पीन ढ़ीला था जिसके कारण बम उनके हाथ में ही फट गया। जिससे भगवती चरण का दायां हाथ , चेहरा, बाजू और पेट का कुछ अंश भी उड़ गया। आंखे बाहर निकल आयी और खून की धारा बहने लगी।  वैशम्पायन जी ने तुरन्त ही उनको अपनी गोदी में ले लिया और रोने लगे।  भगवती चरण ने कहा ," पंडित जी से मेरी तरफ से क्षमा मांग लेना, मैं उनका काम पूरा न कर सका। लेकिन मेरे जानें से 1 जून को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को छुड़ाने की योजना पूरी जरूर करें।" 28 मई,1930 को लाहौर में उनकी मृत्यु हो गई।

दुर्गा देवी वोहरा भाग - 2

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  क्रांतिकारी जीवन दुर्गा देवी वोहरा के पति क्रांतिकारियों के साथी थे इसलिए उन्हें सभी सम्मान से " दुर्गा भाभी " कहते थे।  दुर्गा देवी का काम राजस्थान से हाथियार लाकर क्रान्तिकारियों को देना था।चंद्रशेखर आजाद ने जिस पिस्तौल से खुद को गोली मारी थी, वो भी दुर्गा देवी ने ही उन्हें लाकर दी थी। भगवती चरण वोहरा ने " हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन पार्टी " के लिए घोषणा पत्र तैयार किया था।  अंग्रेजी सरकार के द्वारा करतारसिंह को मात्र 19 वर्ष की आयु में फांसी दे दी गई थी। भारतीय नौजवान सभा ने 1926 में शहीदी दिवस पर उनकी मूर्ति स्थापित की थी। उस पर जो सफेद कपड़ा उढ़ाया जाने वाला था, उसे दुर्गा देवी और सुशीला देवी ने अपनी उंगलियों से खून निकाल कर रंगा था।  दुर्गा देवी के ससुर ने मृत्यु से पहले उन्हें 40,000 हजार रूपए और उनके पिता ने 5000 हजार रुपए दिए थे। ताकि उनके बुरे समय में काम आए।  पर दुर्गा देवी ने इस धन का इस्तेमाल क्रान्तिकारियों की मदद के लिए किया। 1927 में साइमन कमीशन भारत आया, जिसका विरोध लाला लाजपत राय के साथ मिलकर क्रान्तिकारियों ने किया ,जिसमें अंग्रेजी पु...

दुर्गा देवी वोहरा भाग - 1

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भारत की स्वतंत्रता में महिलाओं का भी बहुत बड़ा सहयोग रहा है। जिसमें से दुर्गा देवी वोहरा एक है। प्रारंभिक जीवन दुर्गा देवी वोहरा का जन्म 7 अक्टूबर, 1907 को इलाहबाद के शहजादपुर गांव में हुआ था। उनकी माता का नाम यमुना देवी और पिता का नाम बांके बिहारी बट्ट था। उनके जन्म के 10 माह बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया।  विवाह और शिक्षा उनकी शिक्षा आगरा में हुई और उनके होने वाले पति भगवती चरण वोहरा भी आगरा में ही शिक्षा प्राप्त कर रहें थे। दुर्गा देवी वोहरा जब 11 वर्ष की थी तब उनका विवाह 15 वर्षीय भगवती चरण वोहरा से कर दिया गया था। बाद में भगवती चरण वोहरा लाहौर चले गए और अपनी पत्नि को भी साथ ले गए।  1923 में दुर्गा देवी और भगवती चरण वोहरा ने प्रभाकर की डिग्री हासिल की।

अल्लुरी सीता राम राजू भाग - 2

  हाथियारो को अंग्रजों से छीनना  अल्लुरी सीताराम राजु को पता था कि वे धनुष बाण से अंग्रजों का सामना नहीं कर सकते थे। उन्होंने 22 अगस्त, सन् 1922 को पहली बार अंग्रजों से  चिंतापल्ली  हथियारों को छीन ली। अब यह सिलसिला चलता रहा। फिर कृष्णादेवीपेटा पुलिस थाने और राजवोमांगी पर लगातार तीन बार बंदूकें, कारतूस और तलवारें आदि छीन लिए गए। मई 1922 से मई 1924 तक राजू ने 10 से ज्यादा थानों से हथियार लूटे। इससे तंग आकर अंग्रेजों ने पुलिस थाने में हाथियार रखना छोड़ दिया।  अंग्रेजों को चुनौती  आंध्र प्रदेश के " रंपा" क्षेत्र के निवासी इन्हें आश्रय दिया करते थे।  अंग्रेजों के बहुत कोशिश के बावजूद भी जब अल्लुरी को वे पकड़ नहीं पाये तब, उन्होंने अल्लुरी के एक क्रांतिकारी साथी " विरैयाद्रो " को पकड़ा और उन्हें फांसी की सजा सुना दी। लेकिन अल्लुरी राजु ने अंग्रेजों को चुनौती देते हुए, अपने साथी  विरैयाद्रो  को छुड़ा ले गए।  इसके बाद अंग्रेज सरकार ने अल्लूरी सिताराम राजू को पकड़ने के लिए 10,000 का ईनाम भी रखा गया। गिरफ्तारी 7 मई ,1924 को अल्लुरी सीताराम ...

अल्लुरी सीता राम राजू भाग - 1

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  प्रारंभिक जीवन अल्लुरी सीताराम राजु का जन्म 4 जुलाई 1897 को विशाखापटनम के पांडुरंगी गांव हुआ था। इनके पिता का नाम वेंकटराम राजू और माता का नाम सूर्यनारायणम्मा था।  बहुत ही कम आयु में इनके पिता का देहांत हो गया और इनके पालन - पोषण की जिम्मेदारी इनके चाचा अल्लूरी रामकृष्ण ने निभायी।  अल्लुरी सीताराम ने तीरंदाजी, घुड़सवारी और ज्योतिषशास्त्र का अध्ययन किया।  इन्होंने संन्यासी के तौर पर तक सीतामाई नामक पहाड़ी पर साधना भी की।  अल्लुरी के सहयोगी  1920 में जब गांधी जी का असहयोग आन्दोलन चल रहा था। तब आंध्रा प्रदेश में भी इस आंदोलन का असर था। इस आंदोलन को गति देने के लिए अल्लुरी सीताराम राजु ने पंचायत की स्थापना की और लोगों से अपने आपसी विवाद सुलझाने की अपील की।  अल्लुरी गांधी जी से बहुत प्रभावित थे , इसलिए उन्होंने वनवासियों और ग्राम वासियों को इस आंदोलन में भाग लेंगे के लिए प्रोत्साहित किया। वे ग्रामवासियों को शराब छुड़वाने के लिए प्रेरित करते थे।  असहयोग आन्दोलन असफल होने से वे बहुत ही नाराज हुए।  अंग्रेजो के लाए  फॉरेस्ट एक्ट  के तहत ल...