वीरा
अकबर से, उदयसिंह की जान बचाने वाली वीरा
वीरा, महाराणा उदयसिंह की उपपत्नी थी, उनका उदयसिंह से विवाह नहीं हुआ था, लेकिन वह उदयसिंह को ही पति मानती थी। वीरा ने उदयसिंह के प्राणों की रक्षा की और उन्हें अकबर के पंजों से छुड़ा लिया।
अकबर को गद्दी संभाले कुछ दिन ही हुये थे ,वे कायर और डरपोक था ।
उदयसिंह के पुत्र महाराणा प्रताप ने एक बार अचानक ही कह डाला था कि "यदि महाराणा सांगा और मेरे बीच चितौड़ का राणा और कोई दूसरा न हुआ होता, तो अकबर उस स्वाधीन भूमि पर अपना आधिपत्य कभी नहीं स्थापित कर पाता "
कृष्णसिंह, जयमल्ल सेनापतियों और वीरांगना वीरा ने महाराणा को युद्ध के लिए विवश कर दिया। युद्ध आरंभ हुआ, महाराणा उदयसिंह स्वयं युद्ध में नहीं गये, उनके सेनापति ने घमासान युद्ध करके शाही सेना को भगा दिया। इसी प्रकार सात बार अकबर की सेना को पराजित कर उन्होंने विजय प्राप्त की।
8 वीं बार जब स्वयं सम्राट अकबर युद्ध में आया, तब महाराणा उदयसिंह घबराकर वीरा के पास गये और कहने लगे - "अब संधि करने के सिवा दूसरा कोई उपाय नहीं है, मैंने संधि करने का निश्चय कर लिया है"
यह सुनकर वीरा ने उनमें मातृभूमि के लिए लड़ने का साहस भरा। तब महाराणा युद्ध में गये, लेकिन महाराणा के सेनापति घायल हो गये।
सेनापति के युद्ध में न होने के कारण ,सेना युद्ध में न ठहर सकी। जब वीरा ने यह सुना तो सब सैनिकों को धिक्कारने लगी।
सैनिकों ने कहा - हम लोग युद्ध से भाग कर नहीं आये है। आप ऐसे तिरस्कार पूर्ण वाक्य हमें क्यों सुना रही है?
"हम लोग लहू में तर बतर है, फिर भी यदि सेनापति हो, तो हम इस अवस्था में भी लड़ने के लिए तैयार हैं"
तब वीरा ने स्वयं सेनापति का पद संभाला और युद्ध के मैदान में कूद गई। घमासान युद्ध हुआ। अकबर ने उदयसिंह को बन्दी बना लिया था।
युद्ध जीत कर उदयसिंह को भी छुड़ा लिया गया और सुरक्षित दुर्ग में पहुँचा दिया गया।
इतिहासकार टॉन्ग ने लिखा है कि "केवल वीरा की ही धीरता से चितौड़ की स्वाधीनता इस बार बच गयी।"
उदयसिंह अक्सर कहा करते थे की वीरा के कारण ही मैं छुट पाया और ये बात सरदार को बहुत बुरी लगती थी। अंत में षड़यंत्र रच कर वीरा को मरवा डाला गया।
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